HIDIMBA DEVI (हिडिंबा देवी )

HISTORY OF HIDMIBA DEVI : हिडिंबा देवी का इतिहास



हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में मनाली में स्थित हिडिंबा देवी का मंदिर है। इसका इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है। शायद इससे आप वाकिफ न हो। आपको इसी मंदिर के इतिहास आज हम रू-ब-रू कराने जा रहे हैं। आप जानते हैं कि जुए में सब कुछ हारने पर धृतराष्ट्र व दुर्योधन ने पाण्डवों को वारणावत नाम स्थान में भेज दिया था।

यहां उन्हें जीवित जला देने की योजना बनाई गई थी। पाण्डवों के रहने के लिए पूरा महल लाख का बनाया गया था जो जरा सी आग लगते ही जल उठे। पाण्डवों का इस साजिश का पता चल गया और उन्होंने रात को भीतर ही भीतर एक सुरंग खोद डाली। रात को भवन में आग लगने पर वे सुरंग के रास्ते भाग निकले। इस सुरंग के रास्ते वे निकल कर गंगातट पर आ गए। नाव से गंगा को पार किया और दक्षिण दिशा की ओर बढ़े।

कौरव यही सोचते रहे कि पांडवों की मौत हो गई है। यहां से बच निकलने के बाद पांडव कौरवों की नजरों से बचने के लिए जंगलों में वनवास काटते रहे। इसी दौरान जंगलों में चलते चलते वे एक राक्षस क्षेत्र में आ पहुंचे। सभी थके हुए थे। उन्हें प्यास भी लगी थी। महाबली भीम पानी लेने गए।

जब वे पानी ले कर वापिस आए तो क्या देखते हैं कि माता कुंती सहित सभी भार्इ थक कर सो चुके हैं। भीम इस तरह अपनी माता और भार्इयों को जंगल में जमीन पर सोते देख बहुत दुखी हुए। उस जंगल में हिंडिब नाम का राक्षस अपनी बहन हिंडिबा सहित रहता था।

हिडिंब ने अपनी बहन हिंडिबा से जंगल में भोजन की तलाश करने के लिये भेजा परन्तु वहां हिंडिबा ने पांचों पांडवों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। इस राक्षसी का भीम को देखते ही उससे प्रेम हो गया। इस कारण इसने उन सबको नहीं मारा जो हिडिंब को बहुत बुरा लगा। फिर क्रोधित होकर हिडिंब ने पांडवों पर हमला किया।

हिडिंब और भीम में काफी देर तक जमकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भीम ने हिडिंब को मार डाला। हिंडिबा भीम को चाहती थी। उसने भीम को शादी करने के लिए कहा लेकिन भीम ने विवाह करने से मना कर दिया। इस पर कुंती ने भीम ‌को समझाया कि इसका इस दुनिया में अब और कोई नहीं है।

इसलिए तुम हिंडिबा से विवाह कर लो। कुंती की आज्ञा से हिंडिबा एवं भीम दोनों का विवाह हुआ। इन्हें घटोत्कच नामक पुत्र हुआ जिसने महाभारत की लड़ाई में अत्यंत वीरता दिखाई थी। उसे भगवान श्रीकृष्‍ण से इंद्रजाल (काला जादू) का वरदान प्राप्त था। उसके चक्रव्यूह को सिर्फ और सिर्फ खुद भगवान श्रीकृष्‍ण ही तोड़ सकते थे।


पाण्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा राक्षसी नहीं रही। वह मानवी बन गई। और कालांतर में मानवी से देवी बन गई। हिडिम्बा का मूल स्थान चाहे कोई भी रहा हो पर जिस स्थान पर उसका दैवीकरण हुआ है वह मनाली ही है।


मनाली में देवी हिडिंबा का मंदिर बहुत भव्य और कला की दृषिट से बहुत उतकृष्ठ है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसके नीचे देवी का स्थान माना जाता है।


चटटान को स्थानीय बोली में 'ढूंग' कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी' कहा जाता है। देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है।


यह मंदिर मनाली के निकट विशालकाय देवदार वृक्षों के मध्य चार छतों वाला पैगोड़ा शैली का है। मंदिर का निर्माण कुल्लू के शासक बहादुर सिंह (1546-1569 ई.) ने 1553 में करवाया था। दीवारें परंपरागत पहाड़ी शैली में बनी हैं। प्रवेश द्वार कठ नक्काशी का उत्कृष्ट नमूना है।


भगवान श्रीकृष्ण ने हिडिंबा देवी को लोगों के कल्याण के लिए प्रेरित किया था। विहंगमणि पाल को कुल्लू के शासक होने का वरदान हिडिंबा देवी ने ही दिया था। वह कुल्लू के पहले शासक विहंगमणि पाल की दादी और कुल की देवी भी कहलाती है। कुल्लू का दशहरा तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हिडिंबा वहां न पहुंच जाए।

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